भारत के केरल राज्य में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तीर्थस्थल सबरीमाला मंदिर मौजूद है। सबरीमाला मंदिर में प्रतिदिन भारी संख्या में श्रद्धालु स्वामी अयप्पन के दर्शन हेतु आते हैं। केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम से तकरीबन 175 किमी. दूर ऊंची पहाड़ियों पर स्थित सबरीमाला मंदिर तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को 18 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं।
सबरीमाला का शाब्दिक अर्थ है - ‘सबरी की पहाड़ी’। वहीं, दक्षिण भारत में पर्वतमालाओं को सबरीमाला कहा जाता है। दरअसल सबरीमाला मंदिर का सम्बन्ध माता शबरी से भी है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव और माता मोहिनी के पुत्र स्वामी अयप्पन की मुलाकात माता शबरी ने ही भगवान श्रीराम से करवाई थी।
‘वाल्मीकि रामायण’ और गोस्वामी तुलसीदास रचित ‘रामचरितमानस’ में माता शबरी और भगवान श्रीराम की मुलाकात का विस्तृत वर्णन मिलता है। ऐसे में आपका यह सोचना बिल्कुल लाजिमी है कि भगवान श्रीराम और सबरीमाला मंदिर के भगवान अयप्पन स्वामी की मुलाकात माता शबरी ने कब और कहां करवाई थी? इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए पौराणिक इतिहास से जुड़ी यह रोचक स्टोरी जरूर पढ़ें।
भगवान श्रीराम से स्वामी अयप्पन की मुलाकात
‘वाल्मीकि रामायण’ और गोस्वामी तुलसीदास रचित ‘रामचरितमानस’ के अतिरिक्त भागवत, सूरसागर, साकेत अन्य अन्य धर्मग्रंथों में माता शबरी से भगवान श्रीराम के मुलाकात का उल्लेख मिलता है। भील (आदिवासी) जाति की माता शबरी का नाम भगवान श्रीराम के अनन्य भक्तों में बड़े ही आदर के साथ लिया जाता है।
वाल्मीकि रामायण और गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरितमानस के अनुसार, ऋष्यमुख पर्वत की तलहटी में मतंग ऋषि का आश्रम था, जहां माता शबरी अपने गुरु मतंग ऋषि की सेवा में समर्पित थी। मतंग ऋषि जब देवलोकगमन करने लगे तब उन्होंने माता शबरी से कहा कि प्रतिक्षा करो, भगवान श्रीराम तुम्हे दर्शन देने अवश्य आएंगे।

फिर क्या था, मतंग ऋषि के आदेशानुसार माता शबरी ने भगवान श्रीराम की प्रतीक्षा करनी शुरू कर दी। रामायण ग्रन्थ के अनुसार, भगवान श्रीराम के अभिवादन के लिए माता शबरी प्रतिदिन अपने आश्रम को फूलों से सजाती थी तथा श्रीराम को खिलाने के लिए मीठे-मीठे बेर तोड़कर टोकरी में रखती थी।
भगवान श्रीराम के इंतजार में माता शबरी बूढ़ी हो गई लेकिन श्रीराम नहीं आए। किन्तु सीता हरण के पश्चात भगवान श्रीराम अपने अनुज लक्ष्मण के साथ सुग्रीव से मिलने के उद्देश्य से जब ऋष्यमुख पर्वत की तरफ आए। इसी दौरान मार्ग में माता शबरी का आश्रम था, आखिरकार वह दिन ही आ गया जब शबरी अपने प्रभु के इंतजार में फूल बिछाए प्रतिक्षारत थी। शबरी ने बेर के मीठे फल चख-चखकर टोकरी में रखे हुए थे।
श्रीराम और लक्ष्मण के आगमन पर माता शबरी ने उन्हें मीठे बेर खिलाए। किन्तु भगवान श्रीराम और लक्ष्मण जब ऋष्यमुख पर्वत के नजदीक माता शबरी के आश्रम आए तो उन्होंने सर्वप्रथम एक दिव्य विभूति को तपस्या करते देखा। भगवान श्रीराम ने माता शबरी से पूछा कि वह कौन है?
तब माता शबरी ने कहा कि वह सस्तव (अयप्पन) हैं। स्वामी अयप्पन ने भी खड़े होकर भगवान श्रीराम का अभिवादन किया। इस प्रकार माता शबरी के द्वारा भगवान श्रीराम और स्वामी अयप्पन की मुलाकात का यह रोचक प्रसंग उल्लेखित है।
कौन हैं स्वामी अयप्पन
केरल के सबरीमाला मंदिर स्वामी अयप्पन की मूर्ति स्थापित है। भागवत पुराण के अनुसार, समुद्र मंथन के समय भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण किया था। मोहिनी के सौन्दर्य रूप से भगवान शिव का वीर्यपात हो गया था। भगवान शिव के उसी वीर्य से सस्तव नामक बालक का जन्म हुआ जिसे दक्षिण भारत में स्वामी अयप्पन कहा गया है। सस्तव (स्वामी अयप्पन) को हरिहर पुत्र के नाम से भी जाना जाता है।

इसके अतिरिक्त सस्तव को शास्ता, अयप्पा, अयप्पन तथा मणिकान्ता आदि नामों से जाता है। स्वामी अयप्पन ने दानव महिषासुर की बहन महिषी का वध किया था। महिषी के वध के बाद स्वामी अयप्पन ने पहाड़ों पर जाकर ध्यान किया था। वैसे तो स्वामी अयप्पन के दक्षिण भारत में कई मंदिर हैं किन्तु सबरीमाला मंदिर सर्वप्रमुख है।
सबरीमाला मंदिर
भारत के केरल राज्य में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तीर्थस्थल सबरीमाला मंदिर मौजूद है। सबरीमाला मंदिर में प्रतिदिन भारी संख्या में श्रद्धालु स्वामी अयप्पन के दर्शनों के लिए आते हैं। केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम से तकरीबन 175 किमी. दूर ऊंची पहाड़ियों पर बना सबरीमाला मंदिर चारों तरफ से पहाड़ियों से घिरा हुआ है। सबरीमाला का शाब्दिक अर्थ है — ‘सबरी की पहाड़ी’। वहीं, दक्षिण भारत में पर्वतमालाओं को सबरीमाला कहा जाता है।

सबरीमाला मंदिर तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को 18 पवित्र सीढ़ियां नंगे पांव चढ़नी पड़ती हैं। सबरीमाला मंदिर की इन पवित्र 18 सीढ़ियों का अपना आध्यात्मिक महत्व है। इनमें से प्रथम पांच सीढ़ियां 5 इन्द्रियों की प्रतीक हैं, अगली आठ सीढ़ियां मानवीय भावनाओं को दर्शाती हैं। जबकि आगे की तीन सीढ़ियां मनुष्यों के तीन गुणों का प्रतीक हैं और अंतिम दो सीढ़ियां ज्ञान और अज्ञानता का बोध कराती हैं।
चूंकि भगवान अयप्पन स्वयं ब्रह्मचारी हैं, ऐसे में सबरीमाला मंदिर के तीर्थयात्रियों को एक महीने दस दिन (41 दिन) तक ब्रह्मचर्य का पालन करने तथा मांस-मंदिरा से दूर रहने का कठिन व्रत करना होता है। सबरीमाला मंदिर से जुड़ी मान्यता है कि जो भी व्रती अथवा श्रद्धालु तुलसी अथवा रुद्राक्ष की माला पहनकर और सिर पर नैवेद्य की पोटली रखकर भगवान अयप्पन के दर्शन करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
शुरू में सबरीमाला मंदिर में महिलाओं तथा कन्याओं का प्रवेश वर्जित था, किन्तु सितंबर 2018 में भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में इस प्रतिबंध को हटा दिया। हालांकि इस फैसले पर अभी भी बहस जारी है।
सबरीमाला मंदिर का प्रमुख त्यौहार
सबरीमाला मंदिर में प्रतिवर्ष चार से पांच करोड़ श्रद्धालु आते हैं। चूंकि सबरीमला मंदिर दो महीने के वार्षिक तीर्थयात्रा के लिए खुल चुका है, ऐसे में इस समय श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ रहा है।
भगवान अयप्पा को समर्पित ‘मकरविलक्कु’ पर्व केवल केरल ही नहीं अतिपु दक्षिण भारत का अत्यन्त पवित्र त्यौहार है। मकरविलक्कु पर्व प्रतिवर्ष मकर संक्रांति के दिन सबरीमाला मंदिर में मनाया जाता है। मकर संक्रांति के दिन लाखों श्रद्धालु एवं भक्तजन भगवान अयप्पन की मकर ज्योति का दर्शन करते हैं। मकरविलक्कु पर्व सातों दिनों तक चलता है। 41 दिनों की कठिन तपस्या के बाद मकरविलक्कु पर्व मनाया जाता है जिसे ‘मंडलम व्रतम’ कहा जाता है।
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